कृषि विभाग की सलाह – मूंग की फसल में इन 2 कीटनाशकों का उपयोग ना करें किसान

अगर आप भी जायद में मुंग की खेती (Moong Crop Advisory) कर रहे है तो, आपके लिए कृषि विभाग की जरूरी सलाह है, देखें डिटेल..

👉 व्हाट्सऐप चैनल से जुड़े।

Moong Crop Advisory | देश के कई राज्यों में गेहूं की कटाई का काम चल रहा है। गेहूं की कटाई के बाद खेत खाली हो जाएंगे। ऐसे में यदि किसान खेत में मूंग की जायद फसल ले तो उसे काफी मुनाफा मिल सकता है।

ग्रीष्मकालीन मूंग की जायद मूंग की खेत में बुवाई करने से खेत की उर्वराशक्ति बढ़ती है जिससे उत्पादन बढ़ता है। बीते साल मध्यप्रदेश में किसानों ने मूंग की खेती की और अच्छा मुनाफा कमाया था।

इसलिए किसान गेहूं के बाद खाली खेत में मूंग की खेती करके अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं। मुंग की फसल से अच्छी उपज लेने के लिए किसानों को कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। जैसे की – खाद उर्वरक एवं अन्य जानकारी।

अगर आप भी जायद में मुंग की खेती (Moong Crop Advisory) कर रहे है यह आर्टिकल आपके लिए है। कृषि विभाग ने मुंग की खेती करने वाले किसानों के लिए जरूरी सलाह जारी की है। आइए जानते है कृषि विभाग की सलाह…

मुंग की फसल में इन 2 कीटनाशकों का छिड़काव न करें किसान

Moong Crop Advisory | कृषि विभाग द्वारा किसानों को सलाह दी गई है कि ग्रीष्मकालीन मूंग फसल पर पैराक्वाट एवं ग्लाइफोसेट (सफाया) का उपयोग न करें तथा कम से कम पेस्टीसाइडस का छिडकाव करें। कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि ग्लाइफोसेट एक शाकनाशी है।

साधारण तौर पर इसका उपयोग सकरी एव चौड़ी पत्तियों वाले पौधों को मारने के लिए किया जाता है। यह देखा गया है कि ज्यादातर कृषक ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल की कटाई हारवेस्टर द्वारा कराते हैं तथा हार्वेस्टर से काटने के लिए फसल को जल्द सुखाया जा सके इसके लिए पैराक्वाट एवं ग्लाइफोसेट का अंधाधुंध उपयोग करते है। : Moong Crop Advisory

इससे मानव ही नहीं बल्कि अन्य जीवों जैसे पशु-पक्षियों, मछलियों आदि के तंत्रिका तंत्र की संरचना और उनकी कार्यप्रणाली को नुकसान पहुंचाता है। ग्लाइफोसेट पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक अमीनो एसिड के उत्पादन को अवरूद्ध करके उन्हें नष्ट कर देता है।

ग्लाइफोसेट मिट्टी और पानी में मौजूद रह सकता है और यह कृषि के लिए लाभदायक कुछ सूक्ष्मजीवों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। इसके उपयोग से पाचन, श्वसन, तंत्रिका तंत्र संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती है। : Moong Crop Advisory

इसके साथ ही यह आंखों के लिए नुकसानदायक है। इसके संपर्क में आने से आंख, त्वचा, नाक एवं गले में जलन और अस्थमा हो सकता हैं। यदि इसे निगल लिया जाए तो गले मे जलन, दर्द, मितली हो सकते है।

👉 व्हाट्सऐप चैनल से जुड़े।

जायद में मूंग की खेती की जानकारी

Moong Crop Advisory | जहाँ सिंचाई की पूर्ण सुविधा हो वहाँ पर वर्ष में तीसरी फसल के रूप में जायद मूंग की खेती की जा सकती है। इसकी खेती किसान को अतिरिक्त आय देने के साथ भूमि की उर्वराशक्ति बनाये रखने में सहायक है।

उन्नत किस्में : गंगा – 8 (गंगोत्री), पी.डी.एम. 139, आई.पी.एम. 02-03 (2009), आई.पी.एम. 02-14 (2010), के. 851 (1982), पी. डी. एम.-11 (1987), पूसा विशाल (2001), समर मूंग लुधियाना (एस.एम.एल.)-668 (2003)।

ये भी पढ़ें 👉 कृषि वैज्ञानिकों ने विकसित किया गेंहू की खास किस्म का बीज, भीषण गर्मी सहमे में सक्षम, देखें इसकी डिटेल…

बीज उपचार : मूंग में इमिडाक्लोप्रिड 5 ग्राम/किलो बीज दर के हिसाब से बीजोपचार करके बुवाई करें। : Moong Crop Advisory

खेत की तैयारी : रबी की कटाई के तुरन्त बाद भूमि की आवश्यकतानुसार एक बार जुताई कर खेत को तैयार करें। अंतिम तैयारी के समय ध्यान रखें कि भूमि समतल हो जाए तथा जल निकास अच्छा हो।

भूमि उपचार : बुवाई से पहले प्रति किलो बीज को तीन ग्राम थायराम एवं बाविस्टीन से उपचारित करें।

राइजोबियम कल्चर से उपचार : दलहनी फसलों के बीजों को राईजोबियम से उपचारित करने से अधिक पैदावार होती है। आवश्यकतानुसार गरम पानी में 250 ग्राम गुड़ मिलाकर घोल बनाएँ तथा ठंडा होने पर 600 ग्राम जीवाणु संवर्ध मिला दें। इस मिश्रण की एक हेक्टेयर में बोये जाने वाले बीजों पर भली-भाँति परत चढ़ा दें व छाया में सुखाकर बुवाई करें। : Moong Crop Advisory

उर्वरक : जायद मूंग हेतु 20 किलो नत्रजन व 40 किलो फॉस्फोरस प्रति हेक्टेयर आवश्यकता होती है। उर्वरक की पूरी मात्रा बुवाई के समय ऊर कर दे दें।

बीज एवं बुवाई : जायद मूंग की अधिकतम पैदावार के लिए इसकी बुवाई 15 फरवरी से 15 मार्च तक का समय उपयुक्त रहता है। बुवाई हेतु 15-20 किलो बीज की प्रति हेक्टेयर आवश्यकता होती है। कतार से कतार की दूरी 25 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखें। : Moong Crop Advisory

सिंचाई : फूल आने से पूर्व तथा फलियों में दाना बनते समय सिंचाई अत्यन्त आवश्यक है। तापमान एवं भूमि में नमी के अनुसार अतिरिक्त सिंचाई दें।

निराई-गुड़ाई : आवश्यकतानुसार खरपतवार निकालते रहें। 30 दिन की फसल होने तक निराई-गुड़ाई कर दें। बुवाई के पूर्व खरपतवारनाशी फ्लूक्लोरोलीन 0.75 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलाने के बाद बुवाई करने से खरपतवार पर प्रभावी नियंत्रण रहता है जिससे अधिक पैदावार मिलती है। : Moong Crop Advisory

फसल कटाई : फलियों के झड़कर गिरने से होने वाली हानि को रोकने के लिये फसल पकने के बाद किन्तु दाने झडऩे से पहले कटाई कर लें। इसके बाद एक सप्ताह तक सुखा कर गहाई करके दाना निकाल लें।

खेती किसानी की नई नई जानकारी से अपडेट रहने के लिए आप हमारे व्हाट्सएप चैनल को फॉलो कर सकते है।

👉 व्हाट्सऐप चैनल से जुड़े।

यह भी पढ़िए….👉 मार्च से लेकर जून-जुलाई तक करें बाजरे की इन टॉप किस्मों की बुवाई, मिलेगा जबरदस्त फायदा..

👉 एमपी के 11.50 लाख हेक्टेयर रकबे में होगी मूंग की खेती, कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों के लिए जारी की जरूरी एडवाइस…

👉 20 फरवरी से 15 मार्च तक करें भिंडी एवं बैंगन की इन उन्नत किस्मों की बुआई, जबरदस्त मिलेगा फायदा, देखें डिटेल..

👉 95 से 100 टन प्रति हेक्टेयर की उपज देने वाली रोग प्रतिरोधी शरदकालीन गन्ने की टॉप किस्मों के बारे में जानिए..

👉 मार्केट में आई बुवाई की नई मशीन, अब खेतों में आसानी से होगी बीज की बुवाई, जानें खासियत एवं कीमत

प्रिय पाठकों…! 🙏 Choupalsamachar.in में आपका स्वागत हैं, हम कृषि विशेषज्ञों कृषि वैज्ञानिकों एवं शासन द्वारा संचालित कृषि योजनाओं के विशेषज्ञ द्वारा गहन शोध कर Article प्रकाशित किये जाते हैं आपसे निवेदन हैं इसी प्रकार हमारा सहयोग करते रहिये और हम आपके लिए नईं-नईं जानकारी उपलब्ध करवाते रहेंगे। आप हमारे टेलीग्राम एवं व्हाट्सएप ग्रुप से नीचे दी गई लिंक के माध्यम से जुड़कर अनवरत समाचार एवं जानकारी प्राप्त करें.

Leave a Comment